
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया — देश में जाति जनगणना कराई जाएगी। यह निर्णय देश की सामाजिक संरचना को समझने और न्यायपूर्ण नीतियों के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा,
“यह फैसला संविधान की भावना, सामाजिक ताने-बाने और सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।”
जाति जनगणना की पृष्ठभूमि
भारत में 1947 के बाद से आज तक जातियों की कोई आधिकारिक जनगणना नहीं हुई। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसका आश्वासन तो दिया था, लेकिन अमल नहीं हुआ। कांग्रेस की पिछली सरकारें इस पर चुप्पी साधे रहीं।
लेकिन बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जातिगत सर्वे कराए जाने के बाद से पूरे देश में इसकी मांग तेज हो गई। मोदी सरकार का यह कदम राजनीतिक दृष्टि से भी एक मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
राहुल गांधी और विपक्ष की मांग
कांग्रेस नेता राहुल गांधी लंबे समय से केंद्र सरकार पर जाति जनगणना न करवाने को लेकर निशाना साधते रहे हैं। उन्होंने OBC और अन्य वर्गों की संख्या और उनकी भागीदारी के बीच असंतुलन की बात को जोर-शोर से उठाया। विपक्षी दलों ने भी इसे सामाजिक न्याय से जोड़ते हुए समर्थन दिया।
क्या है जाति जनगणना का महत्व?
जाति जनगणना से सरकार को यह जानकारी मिलेगी कि OBC, SC, ST और अन्य जातियों की वास्तविक जनसंख्या क्या है और किन वर्गों को नीतिगत प्राथमिकता देने की जरूरत है। इससे आरक्षण, कल्याण योजनाएं और संसाधनों के वितरण में डेटा आधारित नीति निर्माण संभव होगा।
राजनीतिक प्रभाव और आगे की राह
यह फैसला निश्चित तौर पर आने वाले चुनावों, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में प्रभाव डालेगा। सामाजिक न्याय की राजनीति में जाति जनगणना अब एक केंद्रीय मुद्दा बन चुकी है।
अब देखना होगा कि सरकार इस प्रक्रिया को कब और कैसे लागू करती है, और इससे जुड़े आंकड़े सार्वजनिक किए जाते हैं या नहीं।
जाति जनगणना का यह फैसला केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं, बल्कि भारत के सामाजिक ढांचे को समझने और सुधारने की दिशा में एक निर्णायक पहल है। मोदी सरकार ने इससे यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह सामाजिक न्याय को लेकर गंभीर है — और चुनाव से पहले यह एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है।
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